प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 02)
आरम्भ : प्रथम खण्ड
स्थान - देहरादून। समय - 08:11 पूर्वान्ह।
सिटी पुलिस हैडक्वार्टर में हड़कम्प मची हुई थी। चारों ओर अफरा-तफरी मची हुई थी, आज कल बढ़ रही आपराधिक वारादतों ने पुलिस के नाक में दम कर रखा था। ऐसा लग रहा था कि कुछ समय से सभी अपराधियों की नजर देहरादून पर ही थी। ऊपर से मीडिया वाले भी हर एक घटना को नमक मिर्च लगाकर परोसते हुए पुलिस की नाकामी के कसीदे गढ़ते रहते थे। सब इंस्पेक्टर कॉन्स्टेबल्स पर झल्ला रहा था। तभी एक लैंडलाइन से ट्रिन ट्रिन की आवाज आई, सब-इंस्पेक्टर ने भूखे भेड़िये की तरह झपटकर फोन उठा लिया।
"क्या कर रहे हो तुम सब! शहर में अफरातफरी का आलम है, चारों ओर कोई न कोई आपराधिक वारदात नजर आ रही है। कहीं कोई डाका डाल रही है, कहीं बच्चें किडनैप हो रहें हैं, कहीं कोई बम फट रहा है। हमारी पुलिस क्या कर रही है?" सामने से फ़ोन करने वाला गरजते हुए बोला। मानो वह सब इंस्पेक्टर को कच्चा चबा जाने को उतावला हो रहा हो।
"ह..हम कोशिश कर रहे हैं सर!" सब-इंस्पेक्टर ने कहलाते हुए कहा।
"बको मत! ग्यारह केसेस में से एक का भी सुराग नही मिला है तुम सबको, क्या खाक छान रहे हो तुम!"
"सॉरी कमिश्नर! सर! बट हमने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है सर! न जाने कहा से अचानक इस शांत क्षेत्र में इतनी आपराधिक गतिविधियां बढ़ गयी, जिस कारण इन्हें संभालना कठिन हो रहा है। इसलिए…." सब-इंस्पेक्टर ने अपनी सफाई पेश करनी चाही।
"इसलिए ये हालात तुम्हारे काबू से बाहर है। मगर हम अपनी जनता की जान दांव पर नही लगा सकते मिस्टर आदित्य! पुलिस की बार बार की नाकामी हमें बर्दाश्त नही होगी।" कमिश्नर ने उसकी बात काटकर भड़कते हुए कहा।
"पर हम क्या करें सर!" आदित्य ने अपनी लाचारी दर्शायी। "सारी फोर्सेज इस समय देहरादून में ही हैं,।मगर कोई सुराग तक नही मिल रहा।"
"अब तुम कुछ नही करोगे। अब हम करेंगे, बल्कि कर भी चुके हैं, मगर तुम में से कोई उसके रास्ते में नही आएगा।" कमिश्नर ने एक एक शब्द पर जोर देते हुए कहा, आदित्य को अपने कानो के पास गर्मी महसूस होने लगी, वह पसीने से सरोबर होने लगा।
"मगर सर! उसे रोकना इम्पॉसिबल होगा।" आदित्य ने मानो जैसे कोई भयावह सपना देख लिया हो। उसे यकीन नही हो रहा था कि अब यहां "उसे" नियुक्त किया जा रहा है। खूंखार जानवर है जैसे वो कोई, सीने में दिल नाम की कोई चीज ही नही, दुश्मनों का कलेजा उसके सामने कंपने लगता है।
"उसकी रगों में तुम सबकी तरह ठंडा खून नही, देशप्रेम के जुनून में दहकती हुई ज्वाला बहती है, और उसे हमारी ओर से फुल परमिशन दी गयी है।" कमिश्नर ने कहा।
"हाँ! म...मगर..!"
"कोई अगर मगर नही, मुझे तुमसे कोई राय नही चाहिए! काम पर जुड़ जाओ ओवर एंड आउट!"
"इस समय वो कहाँ है?"
"होटल पैसिफिक!" कहते हुए कमिश्नर ने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया।
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होटल पैसिफिक!
राजपुर मार्ग से कुछ ही दूर बनी हुई ऊँची नीले-श्वेत मिश्रित रंग की आलीशान इमारत! जो रात में जलाई गई नाईट लाइट्स के हल्के प्रकाश से चमक रहा था। इंद्रधनुषी थीम पर जल रही यह नाईट लाइट आंखों को सुकून दे रही थी। होटल के सामने बड़े अक्षरों में होटल पैसिफिक लिखा हुआ था।
खूब बड़ा कमरा! जहां सब अपने मर्ज़ी से पीते हुए झूम रहे थे, शायद कोई अंग्रेजी सांग चल रहा था, मगर वह लोगो के शोर शराबे के नीचे दब गया था। शायद यह कोई पार्टी हॉल था या होटल में ही बार की सुविधा थी। सभी पार्टी में नशे में धुत्त होकर झूमे जा रहे थे, सिवाय एक शख्स के। वह लंबा काला कोट, चुस्त काली जीन्स, ऊँचा काला जूता, सिर पर लंबी टोप लगाए वह अपने आँखों से काला फैंसी चश्मा उतारकर उसके लेंस साफ करता हुआ उस हॉल के ठीक ऊपर बने टेरिस से कोहनी टिकाकर झुका हुआ था। मगर उसकी आंखें किसी को खोजती हुई नजर आ रही थी, उसकी निगाहें किसी विशेष चीज की तलाश कर रही थीं। देखकर साफ पता चलता था वह यहां कम से कम पार्टी केरने के इरादे से तो नही आया था।
अचानक उसकी नजर एक युवक पर टिक गई, जो एक छोटे गिलास में पैग बनाकर शराब की चुस्कियां ले रहा था। अचानक उसे इस तरह घूरते देख उस युवक को संदेह हुआ। वह अपनी जेब से फ़ोन निकालकर किसी को कॉल करता हुआ बाहर की ओर भागने लगा। इससे उस शख्स को अपने शक पर बल मिला। उसने कुछ दूर पीछे जाकर एक लंबी छलांग लगाई और नीचे रखे महंगी शराब की बोतलों को तोड़ते हुए धड़ाम से नीचे टेबल पर गिरा, टेबल चरपराते हुए टूटकर बिखर गया। अगले ही पल वह बिजली की फुर्ती से उठा और तेजी से उस युवक के पीछे भागा।
जब तक वह उस हॉल से बाहर निकला, वह युवक लिफ्ट में सवार होकर नीचे जाने को तैयार था, इससे पहले 'वह' कुछ कर पाता, युवक ने लिफ्ट चालू कर दी और तेजी से नीचे जाने लगा। उस शख्स को मालूम था कि सीढ़ियों के रास्ते से जाने में देर हो जाएगी और वह कभी हाथ नही आएगा। अगले ही पल उसके दिमाग में कोई ख्याल आया, उसने अपने कदम पीछे किये और कूद गया, छनाक के स्वर के साथ खिड़की का वह काँच चकनाचूर हो गया, उसका शरीर हवा में लहरा गया।
"कमाल का बेवकूफ आदमी है। आत्महत्या करने पर तुला हुआ है।" उसे ऐसा करता देख हॉल में उपस्थित लोगों में से किसी ने कहा।
"मगर वह आत्महत्या नही कर रहा है उसे देखो।" उन लोगो में से कोई एक चीखा, सबका नशा काफूर हो चुका था। यह किसी डरावने सपने से कम न था।
वह शख्स अपने लंबी काली जैकेट का उपयोग ग्लाइडर की तरह कर रहा था, उस युवक के मैन गेट तक आने से पहले वह शख्स नीचे पहुंच चुका था। युवक की आँखों ने आश्चर्य देखा था, उसे यकीन नही हो रहा था कि वह उससे पहले जमीन पर पहुंच चुका था। वह लिफ्ट की ओर भागा, पर लिफ्ट तक पहुंच न पाया।
'धाँय' के स्वर के साथ गोली निकली और उस युवक की दाई टांग को चीरते हुए निकल गयी। वह लड़खड़ाते हुए औंधे मुंह जा गिरा, उसका सिर लिफ्ट के अंदर तथा जिस्म बाहर तड़प रहा था।
"बता किसके इशारे पर हो रहा है ये सब!" वह शख्स गरजा।
"तुम मुझे मौत से नही डरा पाओगे! हाहाहाहा..!" जाने कैसी शैतानी मुस्कुराहट आ गयी थी उस युवक पर।
"तुम मुझे नही जानता बच्चें! अरुण हूँ मैं, लाइफ रुन(बर्बाद) कर दूंगा तेरी साले।" उस शख्स ने अपने दाएं पैर से उसके जख्म को कुचल दिया।
"हम मौत से नही डरते हैं मिस्टर अरुण! ये धमकियां किसी और को देना। हम अपने मकसद के लिए जीते हैं और अपने मकसद के लिए ही मरेंगे।" उस युवक का लहजा खूंखार हो गया था, भयंकर पीड़ा के बाद भी होठों पर शैतानी मुस्कान ठहर गयी थी।
"किसने कहा की मैं तुम्हें मारूंगा? तुम मौत से नही डरते, मगर ज़िंदगी से डरोगे।" कहते हुए अरुण ने दूसरी गोली उसी जख्म से सटाकर चलाया, अपने शूज के पास से एक लंबा चाकू निकालकर उसी जख्म में घुसा दिया। वह युवक दर्द से बिलबिला उठा।
"बोल कौन है तेरा सरगना।" अरुण ने भभकते हुए कहा।
"ये तुम कभी नहीं जान पाओगे। तनिष को तोड़ना तुम्हारे वश में नही है।" युवक ने इस भयंकर दर्द को पीने के इरादे से अपने होठों को भींच लिया, आँखों से आँसुओ की बरसात होने लगी वह अब भी उसी अवस्था में था।
"बोल साले क्या मक़सद है तेरा!" उसके जख्म से खंजर निकालकर अपने दाये हाथ का अंगूठा डाल दिया और बुरी तरह हिलाने लगा। वह युवक जोर जोर से चीखने लगा, उसकी चीखें होटल के बाहर तक जा रही थी। अरुण हैरान था, उसके टॉर्चर को सहने की क्षमता किसी में भी नही थी, आज तक ऐसा कोई नही था जो उसके सामने न टूटा हो।
अब भी युवक उसके गिरफ्त से छूटने की नाकाम कोशिश कर रहा था, वह लिफ्ट में अंदर की ओर उछला मगर अरुण ने उसे वापिस उसी अवस्था में कर दिया। उसके चेहरे पर क्रूरता नृत्य कर रही थी। मगर युवक किसी तरह लिफ्ट की बटन तक पहुंच चुका था, उसने लिफ्ट को ऑन कर दिया था, इससे पहले अरुण कुछ कर पाता दोनों दरवाजो के बीच उसकी गर्दन चिपट गयी, वह जोर जोर से छटपटाने लगा, वहां दर्दनाक चीखें उभरने लगी और फिर उसका शरीर ठंडा होकर शिथिल पड़ गया। उसके बाएं हाथ के बांह पर एक अजीब सा चिन्ह था, दो सर्किल, जिनके बीच एक स्टार बना हुआ था और उसके बीच एक साँप फन खोलकर बैठा हुआ नजर आ रहा था। अरुण अब तक समझ नही पा रहा था कि ये सब कौन हैं क्या चाहते हैं।
"उफ्फ सारी मेहनत बर्बाद हो गयी, ये साले लोग! मेरे देश को खोखला किये जा रहे हैं।" अरुण जोर से चीखा, चीखने के साथ ही वह जमीन पर फायर भी किये जा रहा था, उसकी रिवाल्वर अब भी धुँआ उगल रही थी। बाहर पुलिस की गाड़ी का सायरन बज रहा था। होटल में मौजूद कई लोग वहां आ गए थे पर किसी की हिम्मत न हुई कि अरुण के पास जाकर उससे कुछ कहे।
"ऐ! हाथ ऊपर करो।" अरुण की ओर बन्दूक तानते हुए एस. आई. आदित्य ने कहा। अरुण उसकी ओर मुड़ गया, उसका एक हाथ उस युवक के खून से बुरी तरह सरोबर था। उसे देखते ही आदित्य के तिरपन कांप गए उसने सोचा "आजतक तो बस सुना ही था मगर ये वाकई इतना जालिम है यकीन नही होता!"
"स..सर आप!" आदित्य हकलाया। "जय हिंद सर!" कहते हुए उसने अरुण को सैल्यूट किया। यह देखकर वहाँ उपस्थित सभी लोग बहुत हैरान थे।
"अब आगे का क्या प्लान है सर!" आदित्य ने अरुण को रिप्लाई देते न देख पूछा। अरुण सीधे आकर जीप में बैठ गया।
"तुम पुलिस वालों को पुलिसगिरी सिखानी है।" कहते हुए अरुण ने अपने रिवाल्वर को होलेस्टर में ठूंस लिया। आदित्य बस सकपका कर रह गया। बाकी के दो कॉन्स्टेबल उस युवक के लाश को लिफ्ट से निकालकर पोस्टमार्टम के लिए ले जाने लगे।
◆◆◆
दो दिन बाद
पुलिस हेडक्वार्टर
"पहली वारदात कब हुई?" अरुण ने फ़ाइल चेक करते हुए आदित्य से पूछा। उसके बदन पर तीन सितारा खाकी वर्दी खूब फब रही थी, मगर चेहरे पर मासूमियत का एक कतरा भी नजर नही आ रहा था।
"एक सप्ताह पहले सर! तब से आज तक ग्यारह घटनाएं हो चुकी किसी का कोई सुराग न मिला, ऐसा लगता है मानो कोई भूत प्रेत हो, जो कांड करके गायब हो जाता है।" आदित्य दो तीन और फ़ाइल निकालता हुआ बोला। "ये देखिये!"
"तो क्या तुम सब पुलिस स्टेशन में बैठकर झक मार रहे हो?" फ़ाइल देखते हुए अरुण का लहजा क्रुद्ध हो गया।
"हमने अपनी पूरी कोशिश की है सर! सबसे बड़ी बात तो ये है कि जो लोग रिपोर्ट दर्ज कराने आते हैं वे खुद कन्फर्म नही होते कि कब कैसे क्या हुआ?" आदित्य ने अपनी दुविधा जाहिर की।
"मैं जानता हूँ, ये साले भारत में अराजकता फैलाना चाहते हैं।" अरुण ने जबड़े भींचते हुए कहा।
"नही सर, ये कोई सामान्य अपराधी नही लग रहे हैं, इनके पीछे कोई बड़ी प्लानिंग चल रही होगी। मुझे तो किसी बहुत बड़ी गड़बड़ की आशंका हो रही है।" आदित्य ने सुझाव दिया।
"जब तक जरूरी न हो अपनी राय अपने पास रखना मिस्टर आदित्य! ये मैं अच्छे से जानता हूँ कि कोई बड़ी प्लानिंग चल रही है, हमें ये पता करना है ये सब कौन कर रहा है और किसकी सहायता से!" अरुण ने टेबल पर दोनों हाथों को पटकते हुए कहा।
"आपने उस लड़के को कैसे पहचाना था सर!" आदित्य नरम लहजे में पूछता है।
"मेरे अपने सोर्सेज है, तुम ये जानने की कोशिश मत करो।"अरुण ने उसकी आँखों में झाँकते हुए सपाट लहजे में कहा। "तुम्हें बस जितना कहा जाए उतना ही करो। हर एक भीड़ भाड़ इलाके में एक पुलिस वाला मुस्तैद रहना चाहिए, इसके साथ हर एक नाके, हर एक चेकपोस्ट पर कड़ी नजर रखो। सुनसान इलाकों पर भी दूरबीन से नजर बनाए रखो। कहीं भी कोई भी गड़बड़ की आशंका हो, तुरन्त मुझे रिपोर्ट करो, ओवर एंड आउट।" अरुण अब भी आदित्य की आँखों में आँखे गड़ाये हुए था, आदित्य को यह बहुत अजीब फील हो रहा था।
"ठीक है सर!" कहते हुए वह बाहर निकल गया।
"उफ्फ किसी तरह मैंने उसे ढूंढा था, मेरी पंद्रह दिन की मेहनत बर्बाद हो गयी। अब उसके जैसों को ढूंढना और भी मुश्किल होगा, क्योंकि वे सब अब अलर्ट होंगे। पर उन्हें ऐसी वारदातों से क्या लाभ मिलेगा? कही वे हमें इसमे उलझाकर कुछ और तो नही करना चाहते?" अरुण अपने दिमाग का घोड़ा दौड़ाने लगा, जिस घोड़े को कोई मंजिल नजर न आ रही थी, इसलिए वह अब भी निष्कर्ष निकालने में असफल था, मगर मन में शंकाएं अब भी फुट रही थीं।
दोपहर :
अरुण अब भी थाने में कुर्सी पर पैर फैलाये इन सब घटनाओं में कोई पेंच ढूंढ रहा था, मगर हालात अब भी वही 'ढाक के तीन पात' ही थे। तभी लैंडलाइन पर एक कॉल आया, फोन की घण्टी घनघना उठी, अरुण ने विचारों के भँवर से निकलकर जल्दी से कॉल उठाया।
"हेलो!" उधर से स्वर उभरा।
"हेलो! इंस्पेक्टर अरुण हिअर!"
"सर मैं API (असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर) मेघना बोल रही हूँ, अभी अभी यहां से एक ट्रक गुजरा है जिसपर मुझे कुछ गड़बड़ होने का संदेह हो रहा है। वह ट्रक क्षेत्रीय टोल नाके के पास के चेक पोस्ट को तोड़कर तेजी से भगा जा रहा है।"
"ठीक है तुम अपनी टीम के साथ उसका पीछा करो और मुझे अपडेट देते रहो। मैं अभी आता हूँ। गो फ़ास्ट!" कहते हुए वह फोन क्रेडिल पर पटककर तेजी से बाहर की ओर भागा।
आज देहरादून की सड़कों पर परिवहन ठप्प कर दिया गया था, कई गलियों से गुजरते हुए ब्लू कलर की "क्वासाकी निंजा 1000" मुख्य सड़क पर पहुंच गयी। अपने बाएं कान में इयरपीस लगाए वह किसी अनुभवी बाइकर की भांति हाई स्पीड में चला रहा था, स्पीडोमीटर का कांटा 160Km/H पार होने को था।
"सर ट्रक दक्षिण में शिवालिक पहाड़ियों की ओर तेजी से जा रहा है। उसने एक और चेक पोस्ट की धज्जियां उड़ा दी, मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे उसका ड्राइवर पिया हुआ है और हम फालतू में परेशान हो रहे हैं।" इयरपीस पर मेघना का स्वर उभरा।
"तुमसे जितना कहा जाए उतना करो मिस मेघना! हम कोई रिस्क नही ले सकते। चाहे ये कितना भी बड़ा सरफिरा हो मुझसे बड़ा हो नही हो सकता।" अरुण का भड़कता हुआ स्वर वायरलेस से उभरा।
"हम अब भी उसके पीछे लगे हुए हैं सर! हमारे साथ एक और टीम जॉइन हो चुकी है।" मेघना ने बताया।
"ओके! उसे पकड़ने की कोशिश करो पर गोली मत चलाना, उस में इन्नोसेंट्स हो सकते हैं।" कहते हुए अरुण ने एक्सीलेटर पर और जोर लगाया, पर बाइक आलरेडी अपने फुल स्पीड में थी।
"ओह नो… ये क्या हो रहा है।" मेघना के स्वर में विचलन के भाव थे।
"व्हाट? क्या हुआ?"
"सर वह ट्रक मैन रोड से उतरकर पहाड़ियों के रस्ते पर तेजी से भागा जा रहा है। यह रास्ता बहुत कठिन है, पीछा करना बहुत मुश्किल होगा सर!"
"ओके! तुम लोग वहीं रुक जाओ, अब इसे मैं देख लूंगा। तुम लोग अपने अपने चैकपोस्ट्स पर वापिस जा सकते हो।"
करीब एक मिनट बाद ही अरुण, मेघना की जीप के पास से गुजरा, उसकी स्पीड के कारण कोई उसे देख नही सका था।
"हम क्या करें मैम!" कॉन्स्टेबल ने मेघना से पूछा।
"वापस चलो रामनाथ! न जाने क्यों मुझे लग रहा है ये सब जितना दिख रहा है उससे कहीं बहुत ज्यादा है।" मेघना ने जीप में सवार होते हुए कहा।
◆◆◆
पहाड़ के टेढ़े मेढ़े पथरीले रास्ते से गुजरते हुए ट्रक तेजी से भागा जा रहा था, इस रास्ते पर बाइक ढंग से चला पाना बहुत मुश्किल हो रहा था। पर अरुण किसी भी हालत में स्पीड कम करने के मूड में नही था। अब उसे घाटी में ट्रक नजर आने लगा, उसे अंदाजा था कि वह उससे अब भी करीब दो मिनट पीछे है। यहां से नीचे जाने का कोई शॉर्टकट नही था।
"क्यों न इस टाइम गैप को मिटा दिया जाए।" न जाने क्या सुझा उस सनकी को, फिर से एक्सीलेटर पर हाथ कसता ही चला गया उसका, यह जानते हुए भी कि सुई के नोंक भर असावधानी से भी उसकी जान को खतरा हो सकता है, मगर उसे अपने जान की परवाह ही कब थी, बाइक के स्पीडोमीटर का कांटा 170 पार नजर आने लगा, बाइक ने उस स्थान से एक लंबी छलांग लगा दी, अब वह ठीक ट्रक के ऊपर पहुँचने वाला था तभी उसका ध्यान थोड़ा सा विचलित हुआ, बाइक लहराते हुवे नीचे चट्टानों पर गिरने के लिए बढ़ी। अगले ही पल उसने बाइक छोड़कर एक फ्रंट फ्लिप लिया और सीधे ट्रक के ऊपर पहुंच गया। ट्रक ड्राइवर ने अपनी पूरी शक्ति से ब्रेक लगाया, जिस कारण अरुण न सम्भल सका और आगे की ओर गिरता चला गया। अचानक उसके हाथों में कुछ आया वह ट्रक के बोनट से चिपक गया।
ड्राइवर ने एक बार फिर स्पीड बढ़ानी चाही पर उसके हाथ पांव कांपने लगे। अरुण अब तक सम्भलते हुए बोनट पर चढ़ चुका था, उसके दाएं हाथ में पिस्तौल नजर आने लगी। ड्राइवर का चेहरा काला पड़ गया, साक्षात यमदूत नजर आ रहा था वह उसे। उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था वह बस एक्सीलेटर पर पैर रखकर पूरी ताकत से दबाता हुआ अरुण पर धुंआधार फायरिंग करने लगा, अरुण किसी तरह खुद को बचाने की कोशिश कर रहा था, शायद हड़बड़ी में ड्राइवर से सही निशाना नही लगाया जा रहा था। ट्रक फुल स्पीड में भागा जा रहा था, अरुण की कई चेतावनियों के बाद भी ड्राइवर ने उसे नही रोकने का नाम नही लिया, अब तक उसकी गोलियां भी खत्म हो चुकी थीं। स्टेयरिंग पर उसका कोई ध्यान न था, ट्रक एक बड़ी चट्टान से टकराने ही वाला था, अरुण ने बिना एक पल गंवाए गोली चला दी, गोली ड्राइवर के माथे के बीच में से सुराख करती हुई गुजर गई। ड्राइवर का शरीर वहीं निढाल पड़ गया, चट्टान से अब कुछ ही दूरी शेष थी, अरुण तेजी से लहराया, उसने अपने पैर जोड़कर शीशे पर वार किया, पहले से छलनी हुआ शीशा दो से अधिक वार न झेल सका और भरभरा कर बिखर गया। अरुण फुर्ती के साथ अंदर घुसा और ड्राइवर के शरीर को एक किनारे हटाकर पूरी ताकत से ब्रेक लगा दिया, फिर भी ट्रक चिर्र के चिंघाड़ के साथ घिसटते हुए चट्टान से टकरा ही गया मगर अब तक स्पीड नार्मल हो चुकी थी इसलिये ट्रक एक झटके के साथ रुक गया, वातावरण में टायर्स के जलने की बू फैल गयी।
"तेरी दस गोलियां और मेरी बस एक! और देख तू ही पड़ा हुआ है यहां!" ड्राइवर के चेहरे को नफरत भरी नजरों से देखते हुए अरुण ने कहा। "आखिर इस ट्रक में ऐसा है क्या? कहीं हमारी सारी मेहनत फिर बर्बाद न चली जाए।"
अरुण ट्रक के पीछे गया, वहां लॉकर लगा हुआ था। अरुण ने लॉकर से सटाकर गोली चलाई, बिचारा लॉकर दो गोलियों के सामने न ठहर सका। अरुण ने गेट खोला अंदर का दृश्य देखकर उसका गुस्सा और बढ़ने लगा, अंदर बच्चे थे, बुरी तरह जकड़े हुए, उनकी आँखों में डर स्पष्ट दिखाई दे रहा था। अरुण ने जैसे ही गेट खोला उनकी कातर निगाहें उसे ऐसे देखने लगी मानो अपने घर ले जाने की प्रार्थना कर रहे हो, अरुण की आँखों में भी उनके लिए भाव उभरे, मानो वह कह रहा हो कि उन्हें कुछ नही होने लगा। उसने जल्दी जल्दी से सभी बच्चों का हाथ पैर और मुँह खोला। सब जल्दी से ट्रक से बाहर निकल गए।
"हेलो मिस्टर आदित्य!" अरुण अपने कान में लगे इयरपीस को एक उंगली से सेट करता हुआ बोला।
"हेलो!" उधर से आदित्य की आवाज आई।
"इंस्पेक्टर अरुण हिअर! घाटी के पास से सात बच्चों को ट्रक से निकाला गया है, जल्दी पहुँचो।"
"यस सर!"
"घबराओ मत बच्चों शीघ्र ही तुम सब अपने अपने घरों में होंगे।"
"गूँ गूँ गूँ…!" एक बच्चे ने अरुण को जोर से धक्का दिया, अरुण को कुछ समझ नही आया, उसे उस लड़के पर बहुत अधिक गुस्सा आया। इससे पहले अरुण कुछ और सोच पाता ट्रक में जोरदार धमाका हुआ, उसके पुर्जे पुर्जे बिखर गए। शायद ट्रक में कोई टाइम बम फिट था जो ड्राइवर के दिल की धड़कनों के साथ जुड़ा हुआ था या फिर कोई था जो इन सारी घटनाओ पर नजर गड़ाए बैठा था। ट्रक के पुर्जे अब भी हवा में नजर आ रहे थे, ट्रक अभी भी धूं-धूं कर जल रहा था, परन्तु आसपास अरुण या वे बन्दी बनाये गए बच्चें दिखाई नही दे रहे थे।
◆◆◆◆◆
मसूरी एयरपोर्ट!
"हम यहां क्या कर रहे हैं मिस प्याऊ! हम तो देहरादून जाने वाले थे न!" अनि ने प्लेन से नीचे उतरते हुए कहा।
"देहरादून यहां से ज्यादा दूर नही है और यहां भी घूमने और देखने के लिए बहुत कुछ है। दुनिया में हर चीज तुम्हारी तरह मसखरी नही है।" पियूषा ने उसे धक्का देते हुए नीचे उतारा।
"ठीक है पर मुझे अकेले छोड़कर घास खाने मत चली जाना।" अनि ने मासूम बच्चे की तरह मुँह बनाते हुए कहा।
"तुम ही रहो जंगल में ठीक है, घास खाना तुम्हारा काम है।" पियूषा ने गुस्से से कहा औए पैर पटकते हुए उससे आगे निकल गयी, अनि उसके पीछे भागा।
दोनों जल्दी से जल्दी बाहर निकले।
"टैक्सी!" पियूषा ने टैक्सी वाले को आवाज लगाई।
"कहाँ जाना है बहन जी!" एक अधेड़ उम्र के टैक्सी ड्राइवर ने पियूषा से पूछा।
"देहरादून!" इससे पहले पियूषा कोई जवाब देती अनि ने कहा।
"क्या!" ड्राइवर का मुंह खुला का खुला रह गया।
"इस बंद कर लीजिए अंकल नही तो मक्खी प्रवेश कर जाएगी!" अनि ने जब कहा तो वह ड्राइवर सकपका गया।
"वहाँ अब कोई नही जाता बेटा, इस समय वहाँ जाना खतरों से खाली नही है।"
"अब तो जाना ही पड़ेगा, क्योंकि हम तो है ही खतरों के खिलाड़ी।" अनि ने कहा तो पियूषा हंस पड़ी।
"थैंक यू अंकल! अभी हम मसूरी ही घूमेंगे।" पियूषा ने कहा, अनि उसे फाड़ खाने वाली नजरों से देखता रहा।
"अब बैठो। अंकल हमे केंपटी फॉल्स ले चलिए। फिर हम भट्टा फॉल और ज्वालाजी मंदिर भी घूमने चलेंगे।" पियूषा ने टैक्सी में बैठते हुए कहा।
"क्या फॉल्स में? मैं क्यों फिसलने जाऊं वहां!" अनि हिचकिचाया। ऐसा लग रहा था जैसे वह "फॉल्स" शब्द से डरता हो। "यहां कोई और जगह नही है क्या जैसे... जैसे कुछ भी।"
"बुद्धू यह वाटरफॉल है।" पियूषा ने कहा।
"जी हां! मसूरी के रामगांव में स्थित केंपटी फॉल्स मसूरी आने वाले पर्यटकों के बीच सबसे फेमस जगह है। यह वॉटरफॉल करीब 40 फीट की ऊंचाई से नीचे गिरते हैं और फिर 5 अलग-अलग धाराओं में बंट जाते हैं, इसकी अद्भुत सुंदरता देखते ही बनती है। यहां अक्सर सैलानियों की भीड़ जमी रहती है। वैसे भी हमारी मसूरी तो 'पहाड़ो की रानी' है, जितना भी भ्रमण कर लो जी नही भरेगा।" ड्राइवर ने गाइड की तरह उस स्थान के बारे में बताते हुए कहा। मसूरी के बारे में बताते समय उसका सीना गर्व से फूल गया।
"तो आप वाहन संचालक के साथ पथ प्रदर्शक भी हो, अब हमको कोई तपस्या नही है, लीजिये हम पधार जाते हैं।" कहते हुए अनि टैक्सी में बैठ जाता है। पियूषा उसकी बात सुनकर फिर हँस देती है जबकि ड्राइवर को कुछ भी समझ नही आता, वह, उसे ऐसे देख रहा था जैसे कोई एलियन देख लिया हो। अनि के बैठते ही ड्राइवर ने टैक्सी स्टार्ट कर मसूरी-यमुनोत्री मार्ग पर सरपट दौड़ा दिया।
क्रमशः..
"लिखने में काफी मेहनत करनी पड़ती है, काफी समय भी लगता है इसलिए आप सभी से निवेदन है कि थोड़ा समय निकालकर प्रत्येक पार्ट पर आपको जैसा लगा वैसी समीक्षा/रिव्यू अवश्य कमेंट करें! और कृपया नाइस और बढ़िया से आगे बढ़कर चार शब्द बोलें, हमारी मेहनत का परिणाम आपकी समीक्षाएं ही हैं।"
आपकी समीक्षाओं के इंतजार में..
मैं: समीक्षाओं का भूखा एक अदना सा लेखक!
Sandhya Prakash
15-Dec-2021 06:57 PM
Nice...
Reply
Hayati ansari
29-Nov-2021 09:07 AM
Nice
Reply
Seema Priyadarshini sahay
11-Nov-2021 06:11 PM
बहुत खूबसूरत भाग सर
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